सोलह अक्षरों के बीज मंत्र तारतम में


*प्रणाम सुंदर साथ जी।*

सोलह अक्षरों के बीज मंत्र तारतम में श्री राज जी द्वारा श्री श्याम जी के मंदिर जामनगर में श्री श्यामा जी (निजानंद स्वामी सतगुरु श्री देवचन्द्रजी) को वि.सं.1678 में जो कुछ अकथनीय कहा गया है - वह अति सूक्ष्म,परम गोपनीय, रहस्यमयी एवं परमधाम की चिन्मयी ऊर्जा से परिपूर्ण है। परमधाम की इस दिव्य ऊर्जा का आत्मानुभव करने के लिए उसी प्रकार तन,मन और प्राणों से निजनाम जप की साधना करनी पड़ती है, जिस प्रकार मोती पाने के लिए गोताखोर को गहरे समुद्र में अपने जीवन की बाजी लगाकर डुबकी लगानी पड़ती है। वास्तव में बीज मंत्र श्री निजनाम में *अनादि अक्षरातीत श्री कृष्ण जी* के हृदय सागर (मधु सागर) के परोक्षरूप से चिदानन्दमय (दिव्य ज्ञान) ऐसे रहस्य छिपे हैं, उनकी वास्तविकता हद के साधारण जीवों को कदापि नहीं मिलती, क्योंकि अध्यात्म शास्त्र का यह निर्विवाद महावाक्य है कि परमात्मा की दिव्य वाणी सदैव परोक्षरूप में होती है:-

"परोक्षप्रिया हि देवा: प्रत्यक्षद्विषा:"
"क्या जाने हद के जीवडे, बेहद की बातें।"
"हम बिना द्वार हद के, खोल न सके कोऐ"।
(प्रकाश बेहदवानी 31/50-75)

'मंत्र' शब्द 'मत्रि' धातु से निकला है जिसका अर्थ है *'गुप्त प्रभाषण '* अर्थात जो प्रियतम परमात्मा के दिव्य संदेश पूर्ण समर्पित भाव से कान में धीमे स्वर में सुन पड़े - उसे मंत्र कहते हैं। जब बीज मंत्र *निजनाम श्री कृष्ण जी अनादि अक्षरातीत* मौन होकर आत्मा से ह्रदय में उच्चारित होता है, तो उसका नित्य आनंदमय परिणाम पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। अध्यात्म शास्त्र का विशेष विधान है कि निजनाम मंत्र जाप को जितना ही गुप्त रखा जाता है, उससे परमधाम की उतनी ही अधिक चिन्मय आंतरिक शक्ति प्रगट होती है :- 

श्री जी महाराज इसलिए कहते हैं कि -
*छिपके साहेब कीजे याद*
🙏🙏🙏🙏🙏

1 Comments

Previous Post Next Post

सेवा-पूजा