"श्री क्रुष्ण प्रणामी" क्यों कहलाते हैं ???



आईये आज हम सब यह जानते हैं कि हम "श्री क्रुष्ण प्रणामी" क्यों कहलाते हैं ???

प्रणामी संप्रदाय के लोग परस्पर "प्रणाम" कहकर अभिवादन करते है। यह "प्रणाम" अभिवादन गुरूजनों एवं लघुजनों में विभक्ति की रेखा नहीं मानता हैं। लघुजनों के प्रणाम के प्रत्युत्तर में गुरूजन भी प्रणाम ही कहते हैं। इस संप्रदाय में प्रणाम शब्द भी एक प्रतीक के रूप में व्य्वह्यत है। परमधाम में जिनकी आत्माओं के नाम हैं, वे परनामी हैं। इस प्रणाम शब्द के प्रति प्रणामियों की अपनी मान्यताएं हैं। "प्रणमेतेती प्रणामी" अर्थात परात परब्रह्म को नमन करनेवाले ही प्रणामी कहलाते हैं। पुन: "प्रणाम" का सांकेतिक अर्थ "परनाम" होता है। परात्पर परब्रह्म का नाम लेनेवाले ही परनामी, प्रनामी अथवा प्रणामी कहलाते है। वे "पर" का अर्थ "परात्पर परब्रह्म" अथवा अक्षरातीत मानते हैं और यह परब्रह्म ही प्रणामियों के उपास्य देव हैं। इस प्रकार वे परस्पर परनाम अथवा प्रणाम का अभिवादन कर ब्रह्म प्रियाओं को उस परात्पर ब्रह्म का स्मरण कराते हैं। वस्तुत: "क्रुष्णपरनमितुं शीलयस्य स परनामी" अर्थात परब्रह्म को नमन करनेवाले ही परनामी कहलाते हैं। इस विचार से परस्पर प्रणाम अभिवादन करना प्रणामी धर्मावलम्बी अपना धर्म और कर्तव्य मानते हैं। उनकी एसी धारणा है कि श्री क्रुष्ण को प्रणाम करनेवाले पुन: जन्म नहीं लेते हैं। श्री क्रुष्ण को प्रणाम अर्थात नमन करने के कारण इस संप्रदाय वाले "श्री क्रुष्ण प्रणामी" भी कहलाते है। 

आपका सेवक
बंटी भावसार प्रणामी 
का प्रेम प्रणाम

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