मैं कौन हूँ ?

    प्यारे सुन्दरसाथजी, "मैं कौन हूँ ?" यह बोहोत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। जो कि इस संसार के सभी लोगों के मन में यह प्रश्न उतपन्न नहीं होता। शायद ही कोई ऐसा बिरला होता है जिन्हें ऐसा प्रश्न उत्पन्न होता है। आज से 450 साल पहले एक बालक का जन्म होता है। 10 साल की उम्र में उनके मन में ऐसे प्रश्न होने लगे कि - "मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? और मेरी आत्मा का भरतार (स्वामी) कौन है ? इन्हीं प्रश्नों की खोज में वे छोटी सी उम्र में अपना घर, माता पिता को छोड़कर अकेले निकल पड़े परमात्मा की खोज में। कई प्रकार साधु संत, तिथंकर, ऋषिमुनि, ज्ञानीजन, पंडित से मिले, परमात्मा के विषय में प्रश्न किए परंतु आत्म संतुष्टि न होने के कारण खोज जारी रखते हुए वे नवानगर जामनगर पोहोंचे। वहां एक संत की भक्ति से प्रभावित होकर उनकी शरण मे रहने लगे। और उनकी तरह बाल मुकुंद की भक्ति करने लगे। तत्पश्चात वे 14 साल तक निरंतर श्री मद भागवत कथा श्रवण करने लगे। तभी एक दिन शाक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा ने उन्हें दर्शन दिए। और उन्हें उनकी और अपनी पहचान करवाई। तकरीबन 40 साल खोज करने पर, तपस्या करने पर, दर दर भटक ने पर उन्हें परमात्मा की प्राप्ति हुई।

       प्यारे सुन्दरसाथजी, इनका नाम है सद्गुरु धनी श्री देवचन्द्र जी। क्या हमने इतनी तपस्या की ? क्या हमें इतनी खोज करनी पड़ी ? नहीं........क्यों ??? क्योंकि हमें पका पकाया खाना जो मिल गया है। लेकिन फिर भी हमे उस खाने की कोई कीमत नहीं। क्यों ? क्योंकि हमसे यह माया छोड़ी नहीं जाती। वो कहते हैं ना कि बिना मेहनत के पैसे कभी हजम नही होते वैसे ही बिना मेहनत के निजानंद का ज्ञान भी हजम नही होता। हम अपने आपको प्रणामी कहते है। त्योहारों पे खूब नाचते है, बोहोत भक्ति दिखाते है पर असल में हम प्रणामी है ? जरा अपने आपसे पूछ के देखिए। हमे अपने खुद की पहचान नही है इसलिए तो जहां से अपना काम बने उस चौखट पे सर को झुका दिया। जिस दिन अपने आपको पहचान जाओगे उस दिन से मुंह से श्री राज श्यामाजी के सिवा और कोई नाम नहीं निकलेगा।
आज की ये पोस्ट अपनी खुद की पहचान करो इसलिए है।
प्रणाम
बंटी कृष्ण प्रणामी

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