Showing posts from April, 2020
हद पार बेहद है, बेहद पार अक्षर, अक्षर पार अक्षरातीत, जागिये इन घर ॥ Beyond this perishable, timed and limited world exists indestructible, eternal and infinite, abode of Akshar Brahma. Beyond Akshar is Aksharatit, Wa…
॥ जीव को प्रबोध ॥ सुन मेरे जीव कहूं व्रुतंत, तो को एक देऊ द्रष्टांत । सो तू सुनियो एके चित, तो सो कहत हूं कर के हित ॥ १ ॥ परिक्षित यों पूछ्यो प्रश्न, शुक जी मोको कहो वचन । चौदे भवन में बडा जोए, मो को उत्तर दीजे सोय ॥ २ ॥ तब शुक जी यो…
॥ (आत्मा एवं परमात्मा का संवाद) तथा तारतम का अवतरण ॥ सुनियो वाणी सुहागनी, हुती जो अकथ अगम । सो बीतक कहूं तुमको, उड जासी सब भरम ॥ १ ॥ रास कह्या कुछ सुनके, अब तो मूल अंकूर । कलस होत सबन को न…
श्री क्रुष्ण जी इस धरती पर लगभग १२५ वर्ष तक अलौकिक लीलाएं की और इन तीन स्वरूपों एवं त्रिधा लीला पर श्री शुकदेव जी ने संक्षिप्त में तथा संकादिक (ब्रह्मा जी के मानसिक पुत्र) तथा शिव जी ने भली दिक - दर्शन कराया है, जो कि निम्न स्लोक…
प्यारे सुन्दरसाथजी, "मैं कौन हूँ ?" यह बोहोत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। जो कि इस संसार के सभी लोगों के मन में यह प्रश्न उतपन्न नहीं होता। शायद ही कोई ऐसा बिरला होता है जिन्हें ऐसा प्रश्न उत्पन्न होता है। आज से 450 साल पहले एक बालक का…
आईये आज हम सब यह जानते हैं कि हम "श्री क्रुष्ण प्रणामी" क्यों कहलाते हैं ??? प्रणामी संप्रदाय के लोग परस्पर "प्रणाम" कहकर अभिवादन करते है। यह "प्रणाम" अभिवादन गुरूजनों एवं लघुजनों में विभक्ति की रेखा नहीं म…
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श्रीसाथनो प्रबोध-राग धन्यासरी संभारो साथ, अवसर आव्यो छे हाथजी। आप नाख्या जेम पहेले फेरे, वली नाखजो एम निघातजी।।१ इन्द्रावती कहती है, हे सुन्दरसाथ जी ! स्मरण करो, हमें तीसरे ब्रह्माण्डमें पहुँ…